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Saturday, March 13, 2010

सचिन रिकॉर्ड तेंदुलकर

संगीत सम्राट तानसेन जब स्वर साधना करते थे तो रागों से दीपक जला दिया करते थे। उसी नगरी में आज सचिन तेंदुलकर ने ऐतिहासिक पारी खेलकर दिखा दिया कि उनकी क्रिकेट साधना का तप किसी भी रिकॉर्ड को ध्वस्त कर सकता है। सचिन को ग्वालियर का कैप्टन रुपसिंह स्टेडियम हमेशा ही भाया है लेकिन २४ फरवरी २०१० को उनके बल्ले से निकला करिश्मा तरुणाई के दिल-ओ-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ गया।

स्टेडियम में मौजूद हजारों दर्शकों के लिए सचिन की पारी किसी सपने से कम नहीं थी। किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। हर चौके-छक्के पर वाह-वाह करते दर्शकों को अहसास ही नहीं हुआ कि क्रिकेट का यह जादूगर बॉल-दर-बॉल कब एक ऐसे रिकॉर्ड को छू गया, जो हर बल्लेबाज का सपना होता है। अब जब भी सचिन की इस महान पारी का जिक्र होगा तब इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने हजारों दर्शक अपनी भावी पीढ़ी को फक्र के साथ साझा किया करेंगे। सचिन ने ग्वालियर में अपना पहला वन डे २१ मार्च १९९१ को दक्षिण अफ्रीका के ही खिलाफ खेला। इस मैच में वे कुछ खास नहीं कर पाए और मात्र चार रन के निजी स्कोर पर पवैलियन लौट गए, किन्तु उसके बाद खेले गए आठ मैचों में उनके बल्ले की धुन पर क्रिकेट प्रेमी जमकर नाचे। यहां खेले नौ मैचों में सचिन ने ६६.१२ के औसत से दो शतक व दो अर्धशतक की मदद से ५२९ रन बनाए हैं। एक दिवसीय क्रिकेट में बल्लेबाजी के अधिकांश रिकॉर्ड सचिन के ही नाम है। आज दोहरे शतक का कीर्तिमान बनाकर सचिन ने अपने साथ ग्वालियर का नाम भी सबसे आगे और सबसे ऊपर दर्ज करा दिया। शायद किसी शहर से अपने भावनात्मक लगाव का इजहार करने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं हो सकता।
सचिन वाकई बहुत अच्छा खेले। कोई उन्हें क्रिकेट का देवता कह रहा है, तो कोई उन्हें देश का लाड़ला। लेकिन अपने समय के महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर का कहना कि मैं सचिन तेंदुलकर के पैर छून चाहता हूं, वाकई सचिन की महानता को प्रतिबिंबित करता है। उनकी महानता देखिए, मैन आफ दि मैच का पुरस्कार ग्रहण करते समय उन्होंने कहा- मेरी दो सौ रन की यह पारी देश को समर्पित है, भारतवासियों को समर्पित हैं। कैरियर में कई उतार-चढ़ाव आए लेकिन लोगों ने मुझे पलकों पर बैठाए रखा।