कोई हाथ भी ना बढ़ायेगा
जो गले मिलोगे यूं तपाक से
ये नये मिजाजों का शहर है..
जरा फांसले से मिलो....
ये सही है कि आज के दौर में..कागजी दुनिया..दौड़ती-भागती जिंदगी में...जहां हम काम करते हैं...दो वक्त की रोटी के लिये जद्दोजहद करते हैं,(रोटी घर की हो या फिर फाइव स्टार में लंच डिनर)...वहां सच्चे दोस्तों की कमी है...आमतौर पर औपचारिक,पेशेवर तरीके से लोग मिलते हैं...झूठी हंसी,दोस्ती की फीकी चादर ओढ़े हुए ऐसे बहुत से लोग हमें रोज मिलते हैं...हम भी जानते हैं..वो भी जानते हैं कि ये रिश्ता..या दोस्ती महज काम निकालने या काम करने के लिये हैं..हम अपने कॉलेज के..बचपन के,मौहल्ले के उन दोस्तों को याद करते हैं...जो हमारे लिये अपने घर में डांट खाते थे...कहीं शादी में गये तो..हमारे लिये भी साइड से एक थैली में गाजर का हलवा भर लाते थे..पैसे मिलाकर पिक्चर देखना,होटल में दस-दस रूपये मिलाकर बिल चुकाने वाले...उन दोस्तों की जगह कोई कभी नहीं ले सकता...लेकिन ऐसा भी नहीं है कि समय और जगह बदलने के साथ हमें नये और भरोसमंद दोस्त नहीं मिलते...सौ की भीड़ में एक या दो लोग अब भी ऐसे निकाल आते हैं..जो पुराने दोस्तों की याद ताजा कर देते हैं...उनकी कमी को पूरा करने की कोशिश करते हैं...उन्हें गले लगाकर वही अपनापन,भरोसे और इत्मिनान का अहसास होता है...वो भी मुश्किल में साथ देते हैं..सुख-दुख में गले लगाते हैं...जरूरत बस...दोस्ती की उस नजर,उस शख्स को पहचानने ओर उस हाथ को पकड़ने की है...
Monday, February 9, 2009
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Ashok ji
ReplyDeleteYe dost ham nahi chhodenge...
Really Nice Article..
Badhi
nice article buddy
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