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Wednesday, January 7, 2009

भाषा के रूप में भोजपुरी



बहुत लोगन के मन में अभी भी ई भ्रम बा कि भोजपुरी भारत वर्ष के लोक भाषा ह। लोक भाषा कहला से तात्पर्य ई निकली कि भोजपुरी के कौनो समृद्ध साहित्यिक परम्परा नईखे। लोक भाषा के विद्वान लोग जवन परिभाषा देले बा ओकर आशय संक्षेप में ई निकालल जा सकेला कि लोक भाषा लोक में प्रचलित एगो भाषा होखेला जेकरा माध्यम से लोग आपस में विचार-विनिमय करेला। लोक भाषा में साहित्य सृजन ना होखे। लोक खाली स्मृति में जिएला यानि लोक के विचार या संस्कृति के कवनो लिखित दस्तावेज ना होखे। अगर उपर के कसौटी प भोजुरी के परखल जाउ त ई बात साबित हो जाई कि भोजपुरी आज के तारीख में लोक भाषा नईखे रहि गईळ। ई भाषा लोक के सीमा लांघ के अब भाषा के दर्जा पावे के अधिकारी हो गईल बा।

भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से अगर देखल जाउ त भोजपुरी के लोग हिन्दी के एगो बोली के रूप में जाने ला लोग। बोली के क्षेत्र सीमित होला। अगर भोजपुरी के महज बोली कहल जाव त ओकर आपन भाषा के रूप में पहचान के एगो संकट जरूर पैदा हो जात बा। ई सही बा कि भोजपुरी भाषी प्रदेश के लोग हिन्दी के अपना हृदय से अंगिकार कईले बा लोग। लेकिन हिन्दी से प्रेम के ई मतलब कतई नईखे कि आपन महतारी के भाषा के हमनी के भुला दिहल जाव। आजुओ भोजपुर अंचल ( इंहा भोजपुर अंचल के प्रयोग व्यापक अर्थ में कईल जा रहल बा जे में संपूर्ण भोजपुरी भाषी क्षेत्र समाहित बा)में जनम लेबे वाला बच्चा सबसे पहिले अपना मुंह से माई बोलेला। जब बांगला, मराठी तथा उड़िया के भाषा कहल जा सकेला त भोजपुरी के काहे ना।

सबसे पहिला बात त ई कि भोजपुरी के एगो समृद्ध साहित्यिक परम्परा बा। एक समय जे.एन.यू. के हिन्दी के प्रोफेसर डॉ. मैनेजर पाण्डेय कहले रहन कि भोजपुरी के पहिला कवि कबीर दास हवें। अगर उनका बात के समर्थन कईल जाव त कबीर दास के भोजपुरी भाषा, के पहिला कवि मानल जा सकेला। इ बात भी महत्वपूर्ण बा कि अगर लोक भाषा के अपना के हिन्दी स्वयं के समृद्ध कई सकेले त भोजपुरी काहे ना। हिन्दी में त अपभ्रंश से लेकर अवधि तक के सामग्री के समाहित कईल गईल बा। जब कि हिन्दी से अधिक अवधि, ब्रजभाषा आदि भोजपुरी के निकट बा। आज भी भोजपुरी अंचल में सूर, कबीर आ तुलसी दास के आपन कवि समझल जाला।

दूसर बात ई कि भोजपुरी बोले वाला के संख्या आज भारत ही ना विश्व में भी तेजी से बढ़ि रहल बा। भोजपुरी भाषी लोगन के संख्या आज पूरा भारत वर्ष में हिन्दी के बाद सबसे ज्यादा बा।

आज भोजपुरी भाषा के उन्नति के ले के बहुत लोग सामने आ रहल बाढ़ें। फिल्म से लेकर इंटरनेट तक में ई भाषा के बोल-बाला बढ़ि रहल बा। कतने साहित्यिक पत्रिका भी एह भाषा के निकल रहल बाड़ी स। आज ई समय आ गईल बा कि सरकार भी पूर्वाग्रह छोड़ के भोजपुरी के भाषा के दर्जा देबे और ओकरा के भारत के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करे। संवैधानिक दर्जा के बाद भोजपुरी के विकास में बहुत तेजी आई। ई हमार विस्वास बा।

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