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Friday, January 9, 2009

'चुनाव हारा तो क्या सांसद तो हूं, मंत्री बनूंगा'- शिबू

'चुनाव हारा तो क्या सांसद तो हूं, मंत्री बनूंगा'- शिबू
नई दिल्ली: झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव हार गए, लेकिन उनका कहना है कि केंद्र में मंत्री पद का उनका दावा अभी भी बरकरार है। सोरेन ने कहा कि वह अभी संसद सदस्य हैं, इस लिहाज से उनका मंत्री पद का दावा बनता है। उन्होंने कहा कि इस बारे में कोई भी फैसला यूपीए से बातचीत के बाद लिया जाएगा। गौरतलब है कि सोरेन काफी जद्दोजहद के बाद 27 अगस्त को मुख्यमंत्री बने थे। वह विधानसभा के सदस्य नहीं थे, सो संविधान के मुताबिक सोरेन को छह महीने में विधानसभा का सदस्य बनना थे। उपचुनाव का नतीजा आते ही कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि सोरेन इस्तीफा दे देंगे। लेकिन इस्तीफा देने में आनाकानी कर रहे सोरेन कह रहे हैं कि वह यूपीए के नेताओं से दिल्ली में बात करने के बाद ही कोई फैसला लेंगे। सोरेन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और आरजेडी चीफ लालू यादव से मिलने की बात कर रहे हैं। (पीटीआई के मुताबिक, शुक्रवार को इनकी मुलाकात हो सकती है।) सोरेन को झारखंड पार्टी के गोपाल कृष्ण पटार ने लगभग 9 हजार वोटों के अंतर से हराया। झारखंड पार्टी भी यूपीए का घटक दल है। पटार को 34,127 वोट मिले और झारखंड मुक्ति मोर्चे के सोरेन को 25,154 वोट। मतदान 3 जनवरी को हुआ था। सोरेन का विधानसभा चुनाव हार जाना यूपीए के लिए एक अप्रत्याशित झटका है। सोरेन ने पिछले साल लोकसभा में यूपीए सरकार का समर्थन इस शर्त पर किया था कि यूपीए उन्हें झारखंड का मुख्यमंत्री बनाएगा। सोरेन की हार से राज्य में यूपीए के अंकगणित पर कोई असर नहीं पड़ा है। मगर नैतिक रूप से उसे भारी परेशानी का सामना करने पड़ सकता है। विपक्ष मुख्यमंत्री की हार को सरकार की हार बता रहा है। कांग्रेस सोरेन के रवैये से खुद को असहज महसूस कर रही है। मगर लोकसभा चुनाव सिर पर होने के कारण खुलकर उनसे इस्तीफा मांगने की हिम्मत नहीं कर रही है। सिर्फ इशारों में जनता के फैसले की दुहाई दे रही है। लेकिन यूपीए के प्रमुख घटक एनसीपी ने सोरेन से तत्काल इस्तीफे की मांग कर दी है। नई परिस्थितियों में पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कहा है कि अगर यूपीए उन्हें फिर से राज्य की जिम्मेदारी सौंपेगा, तो वह इसके लिए तैयार हैं। लालू यादव ने राज्य की राजनीतिक परिस्थिति खराब बताते हुए कहा कि वहां लोकसभा के साथ विधानसभा के भी चुनाव हो जाने चाहिए। मुख्यमंत्री के रूप में सोरेन के इस दूसरे कार्यकाल का हश्र भी पहले की तरह ही हुआ। पहली बार वह मार्च 2005 में राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। उस समय वह केवल 9 दिन ही मुख्यमंत्री रह पाए थे और सदन में बिना बहुमत साबित किए ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। सोरेन दूसरी बार मधु कोड़ा को हटाकर राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। (नवभारत टाइम्स)

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