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Wednesday, January 7, 2009

राजनीतिक साजिश के शिकार भोजपुरी

राजनीतिक साजिश के शिकार भोजपुरी


ई कइसन विडम्बना बा कि जवना सरकार संसद के आवेवाला सत्र में भाषा का रूप में आठवीं अनुसूची में भोजपुरी के सामिल करेके वादा कइले रहे, ऊ तय सत्र में ऊ बिलो पेश करे में नाकाम रहल। ई घटना भोजपुरी आ भोजपुरी भाषियन के बेचारगी के ना, बलुक सरकार के राजनीतिक इच्छाशक्ति के कमी आ अंतविरोध के दर्शावत बा। उलटे, रिजर्व बैंक के ई पैतराबाजी, कि नोट पर अउर भाषा में छापे खातिर जगह नइखे बा¡चल, अइसन थोथी दलील बा, जवना पर खाली ह¡सल जा सकेला। दोसरा ओर सिविल सेवा के इम्तहान खातिर बहानाबाजियो समझ से परे बा।

भोजपुरी कबो चमचागीरी आ तेल-मालिश करे वालन के भाषा ना रहल। भोजपुरी भाषी लोग बाबू कुंवर सिंह, मंगल पाण्डे, चित्तू पाण्डेय वगैरह अनगिनत क्रांतिकारियन का अगुवाई में गोरन का खिलाफ आजादी के लड़ाई में बढ़ि-चढ़ि के हिस्सा लिहलन आ फा¡सी, काला पानी आ गिरमिटिया मजूर बने तक सजाइ भोगे-भुगते में पाछा ना रहलन। ओही घरी रघुवीर नारायण के बटोहिया गीत `सुंदर सुभूमि भइया भारत के देसवा से, मोर प्रान बसे हिमखोह रे बटोहिया´ आजादी के सेनानियन के राष्ट्रगीत बनि गइल रहे।

आजादी का बादो एह हलका के लोग-लुगाई आमजन के मुद्दन के विद्रोही तेवर का स¡गे बेबाकी से उठावल आ जनचेतना जगावे का दिसाईं हरमेसे पहलकदमी कइलन। एह से ई लोग सत्ता-बेवस्था के आ¡खि के किरकिरिए बनल रहि गइलन। इिन्हकर स्पष्टवादी जुझारू सुभाव सरकार के फुटलो आ¡खि ना सोहात रहे। नतीजा ई भइल कि सउ¡से दुनिया में फइलल बाइस करोड़ भोजपुरी भाषियन के भावना से खेलवाड़ करत आजु ले एह भाषा के आठवीं अनुसूची में ले सामिल ना करे के राजनीतिक साजिश कइल जा रहल बा।
अपना जीवटता आ पद-प्रतिष्ठा के बावजूद भोजपुरी भाषियो लोग अपना महतारी भाषा के उपेक्षा के इचिकियो परवाह न कइलन। तबे नू पहिल भोजपुरिया राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद आ भोजपुरिया प्रधानमंत्री चंद्रशेखरो एकरा के उचित स्थान दियवावे के बात ना सोचलन। जवना घरी आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष रहलन, अकादेमी से भोजपुरी के मान्यता का सवाल पर पक्ष आ विपक्ष में बराबरे बराबर सदस्य रहलन आ अध्यक्ष द्विवेदिए जी के मत पर आखिरी निरनय होखे वाला रहे। बाकिर ऊ खाली एही कारन से खिलाफत कइ दिहलन कि भोजपुरी भाषी होखला का नाते कतहीं उन्हुका पर पक्षपात कइला के आरोप मत लागे पावो। एह बात के रहस्योद्घाटन आचार्य द्विवेदीजी अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के पटना अधिवेशन के सभापतित्व करत सार्वजनिक रूप से खुदे कइले रहलन।

बाकिर ई अंतरराष्ट्रीय भाषा कवनो सरकारी मान्यता आ संविधान के अनुसूची के मोहताज नइखे। अपना आदिकवि कबीर के परम्परा आ तेवर के ई आजुओ बरकरार रखले बिया। बोली से भाषा बने में ई आपन मंजिल खुदे तय कइले बिया। संचार माध्यम आ फिलिम जहवा¡ एकरा के अभूतपूर्व शोहरत दियवावल, उह¡वे तमाम विधा के यादगार कृतियन के प्रकाशन, भाषाई साहिित्यक इतिहास, शब्दकोश, स्नातकोत्तर स्तर के पढ़ाई (कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आ नालन्दा खुला विश्वविद्यालय में) आ देश के कोना-कोना से प्रकाशित पत्र-पत्रिका (´समकालीन भोजपुरी साहित्य´-देवरिया से, `पाती´-बलिया से, `भोजपुरी संसार´-लखनऊ से, `भोजपुरी माटी´-कोलकाता से, `दुलारी बहिन´-उड़ीसा से, `निभीZक संदेश´-जमशेदपुर से, `भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका´, `कविता´, भोजपुरी विश्व´-पटना से, `पनघट´-नोखा से) एह भाषा के हर दृष्टि से समृद्ध कइले बाड़ी स। बस कमी रहल त एगो समाचार पत्रिका के, जवना के क्षतिपूर्ति साप्ताहिक `संडे इंडियन´ का जरिए बखूबी हो रहल बा। ई सभ किछु भोजपुरी कवनो सरकारी संरक्षण में ना, अपना अदम्य इच्छाशक्ति आ जद्दोजहद का बदौलत हासिल कइले बिया। अइसना जनप्रिय विकसित आ समृद्ध भाषा का खिलाफ राजनीतिक साजिश कके एकरा के अब ले सरकारी मान्यता आ आठवीं अनुसूची से वंचित राखल भारत सरकार खातिर चुरूवा भर पानी में डूबि मरे के बात बा। अबो त भगवान रहनुमा लोगन के सद्बुिद्ध देसु!

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