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Wednesday, January 14, 2009

क्या कश्मीर आन्दोलन कश्मीरियत के लिए है ?

किसी आंदोलन का आधार क्या है? पहचान की एक संयुक्त बुनियाद, सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषायी या पारंपरिक समता की नींव। लेकिन, अगर कोई जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के बीच इन्हीं आधारों पर (जैसा अलगाववादी कहते हैं-कश्मीर आंदोलन) समानता की बात करता हैं,तो लोगों को बहुत सी गलत सूचनाएं मिलेंगी। दरअसल, 'कश्मीर' में अलगाववादी (कश्मीर का मतलब सिर्फ कश्मीर,जिसमें जम्मू,लद्दाख का हिस्सा शामिल नहीं होता) कश्मीरियत की बात करते हैं,और इसे ही अपने आजादी के आंदोलन का आधार बताते हैं।

लेकिन,इस मसले पर आगे बात करने से पहले यह जानना जरुरी है कि कश्मीरियत का मतलब क्या है? दरअसल, महाराष्ट्रवाद,पंजाबवाद और तमिलवाद की तरह कश्मीरियत भी एक छोटे से हिस्से के लोगों की साझी सामाजिक जागरुकता और साझा सांस्कृतिक मूल्य है। अलगाववादियों और कश्मीर के स्वंयभू रक्षकों के मुताबिक कश्मीर घाटी में रहने वाले हिन्दू और मुसलमानों की यह साझा विरासत है। लेकिन, सचाई ये है कि जम्मू,लद्दाख और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के पूरे हिस्से और घाटी के बीच कोई सांस्कृतिक समानता नहीं है। तर्क के आधार पर फिर यह कश्मीरियत से मेल नहीं खाता। दरअसल, सचाई ये है कि जम्मू और कश्मीर की संस्कृति में कई भाषाओं और पंरपराओं को मेल है, और कश्मीरियत इसकी विशाल सांस्कृतिक धरोहर का छोटा सा हिस्सा है।

अक्सर, खासकर हाल के वक्त में, अलगाववादी नेता या महबूबा मुफ्ती को हमने कई बार मुजफ्फराबाद, दूसरे शब्दों में सीमा पार के कश्मीर, की तरफ मार्च का आह्वान करते सुना है। लेकिन, हकीकत ये है कि इस पार और उस पार के कश्मीर में कोई सांस्कृतिक, भाषायी और पारंपरिक समानता नहीं है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में रहने वाले मुस्लिम समुदाय का बड़ा तबका रिवाज और संस्कृति के हिसाब से उत्तरी पंजाब और जम्मू के लोगों के ज्यादा निकट है। जिनमें अब्बासी, मलिक, अंसारी, मुगल, गुज्जर, जाट, राजपूत, कुरैशी और पश्तून जैसी जातियां शामिल हैं। संयोगवश में इनमें से कई जातियां पीओके में भी हैं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के अधिकृत भाषा उर्दु है, लेकिन ये केवल कुछ लोग ही बोलते हैं। वहां ज्यादातर लोग पहाड़ी बोलते हैं,जिसका कश्मीर से वास्ता नहीं है। पहाड़ी वास्तव में डोगरी से काफी मिलती जुलती है। पहाड़ी और डोगरी भाषाएं जम्मू के कई हिस्से में बोली जाती है।

हकीकत में, दोनों तरफ के कश्मीर में सिर्फ एक समानता है। वो है धर्म की। दोनों तरफ बड़ी तादाद में मुस्लिम रहते हैं। तो क्या यह पूरी कवायद, पूरा उबाल धार्मिक वजह से है? इसका मतलब कश्मीरियत की आवाज,जो अक्सर कश्मीर की आज़ादी का नारा बुलंद करने वाले लगाते हैं,वो महज एक सांप्रदायिक आंदोलन का छद्म आवरण यानी ढकने के लिए है। और अगर ये सांप्रदायिक नहीं है, तो क्यों कश्मीरियत की साझा विरासत का अहम हिस्सा पांच लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडित इस विचार के साथ नहीं हैं, और दर दर की ठोकर खा रहे हैं। विडंबना ये है कि भाषा,रहन-सहन-खान पान और सांस्कृतिक नज़रिए से कश्मीरियत की विचारधारा में जो लोग साझा रुप में भागीदार हैं,वो कश्मीरी पंडित ही अब घाटी से दूर हैं।

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