नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। झारखंड के राजनीतिक संकट को लेकर असमंजस कायम है। अपने मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की हार के बाद भी जहां झामुमो हारने के लिए तैयार नहीं है, वहीं कांग्रेस और राजद की ओर से संकेत दे दिया गया है कि अब उनकी शर्त नहीं मानी जाएगी। यानी न तो सोरेन और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा।
शिबू हार मानने को तैयार नहीं हैं। जामताड़ा के विधायक विष्णु भैया के इस्तीफे के बाद बदली स्थिति में वह संप्रग के घटक दलों पर फिर से दबाव बनाने में जुट गए हैं। लेकिन दिल्ली में असमंजस की स्थिति है। ऐसे में यह संभावना बढ़ गई है कि मुख्यमंत्री के नाम पर एक राय नहीं बनी तो कुछ समय तक राज्य में विधानसभा निलंबित रहेगी और शासन राज्यपाल के हाथ होगा। ऐसे में तत्काल चुनाव की भी मजबूरी नहीं होगी।
गेंद अपने पाले में रखने की नीति के साथ गुरुवार देर रात सोरेन दिल्ली पहुंचे थे, लेकिन यहां उनकी पूरी तैयारी पर संप्रग नेताओं ने पानी फेर दिया। शुक्रवार को हाल यह रहा कि सोरेन समेत पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा व मंत्री बंधु टिर्की को पूरे दिन संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मिलने का समय नहीं दिया। हालांकि सुबह ही कांग्रेस के झारखंड प्रभारी अजय माकन तथा अहमद पटेल ने सोनिया गांधी को पूरी स्थिति से अवगत करा दिया था। इधर, लालू भी झारखंड में अपने विधायकों के संपर्क में रहे। देर शाम सोरेन अजय माकन और लालू से मिलने में कामयाब रहे। लालू के आवास से बाहर निकलने के बाद सोरेन ने रहस्यमय अंदाज में कहा, 'झारखंड जाकर प्रायश्चित करूंगा।' इस प्रायश्चित का मतलब क्या है, उन्होंने स्पष्ट नहीं किया। लेकिन सोरेन यह संकेत देने से नहीं चूके कि कांग्रेस ने फैसला उनके हाथ में छोड़ दिया है। उन्होंने यह संकेत भी दिया कि उन्हें एक मौका और मिला तो वह जामताड़ा से चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बने रहेंगे। जाहिर है कि इस नए समीकरण को लेकर भी उहापोह की स्थिति बन गई है। बहरहाल, झामुमो अगले कदम का फैसला शनिवार को रांची में केंद्रीय समिति की बैठक में लेगा।
इधर, जामताड़ा के विधायक विष्णु भैया के इस्तीफे के बाद जगी सोरेन की आशा को झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने धूमिल कर दिया है। दिल्ली में मौजूद मरांडी ने कहा कि अगर सोरेन लोकतंत्र का मखौल उड़ाने की कोशिश करते हैं तो जामताड़ा से वह खुद उनको चुनौती देंगे। जामताड़ा में मरांडी के समर्थकों की भारी तादाद मानी जाती है। ऐसे में अगर सोरेन फिर से दुर्भाग्यशाली रहे तो संप्रग की बड़ी बदनामी होगी।
लिहाजा संकेत साफ है कि कांग्रेस और लालू सबसे पहले सोरेन से इस्तीफा चाहते हैं। हालांकि कांग्रेस के एक-दो नेता इस मत के भी हैं कि सोरेन को अपनी पूरी शक्ति खर्च कर लेने देनी चाहिए। कांग्रेस ने सर्वसम्मत उम्मीदवार तय करने का जिम्मा लालू पर छोड़ दिया है। हालांकि लालू के पसंदीदा कोड़ा पर न तो कांग्रेस तैयार है और न ही सोरेन। लिहाजा दौड़ में सबसे आगे होने के बावजूद कोड़ा का फिर से मुख्यमंत्री बनना मुश्किल है।
सूत्रों का मानना है कि एक-दो दिन में आम राय नहीं बनी तो फिर विधानसभा निलंबित कर शासन राज्यपाल के हाथ में दिया जा सकता है। कांग्रेस के लिए यह विकल्प सबसे अच्छा है। एक तीर से दो निशाना तो सधेगा ही, जल्द से जल्द लोकसभा चुनाव करवाने की मजबूरी भी नहीं होगी। सिरदर्द भरे इस गठबंधन से मुक्ति भी मिलेगी और सही समय पर चुनाव करवाने की आजादी भी होगी।
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