आपन माटी, बोली और समाज के प्रति लगाव ही भोजपुरिया पहिचान के सबसे बड़ा प्रमाण ह | एगो ज़माना रहे जब धोती-कुरता, पगड़ी-लाठी, गमछा में सतुआ औरी जबान पर भोजपुरिया बोली रहे हमनी के भोजपुरिया पहचान | लिट्टी-चोखा, मर्चा-नून-सरसों के साग, मकुनी और फुटेहरी के साथ-साथ ठेकुआ, रबड़ी-बतासा के आपन खाना के मेनू में शामिल करेवाला के भी हम भोजपुरिया मानेनी -- भले ही चूल्हा के बदले ओवेन के इस्तेमाल लोग करे |
मार-काट, कूटनीति, कलह-विद्रोह, बदला, पारिवारिक द्वेष, जलन, टाँग अडावल, नेतागिरी, दूसरा के साथ दोल्हा-पाती खेलल, ठेंठ और लट्ठमार बोली, अशिक्षा औरी गरीबी -- इहो कुल्हि भोजपुरिया समाज में देखे के मिलेला लेकिन ई हमनी के समाज के ग़लत इमेज बा आ बाहर के समाज, भोजपुरिया लोगन के इहो दृष्टि से देखेला, एहसे कि हमनी के इहे सब में उलझ के रह जानी जा | करियर, बिज़नस,उच्च-शिक्षा और आर्थिक विकास औरी उन्नति पर ध्यान कम देनी जा, मंत्री-संत्री और सरकारी नौकरी के महत्व ज्यादा देनी जा | सबके बड़का खोट ई बा कि यु.पी / बिहार / झारखण्ड के भोजपुरिया लोग मिल-जुल के कभी काम ना करेला | लेकिन अब ई सब बदल रहल बा |
हालात और ज़माना बदल गईल लेकिन भोजपुरिया संस्कृति, संस्कार, तीज-त्यौहार, खाना-गाना और बोली -- जबले हमनी के जिनगी के हिस्सा रही, तबले भोजपुरिया पहचान बनल रही | पूरा ना त कुछ अंश ही सही, भोजपुरी माटी के साथ लेके चलीं और गर्व से कहीं हम भोजपुरिया हईं |
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