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Saturday, January 10, 2009

ख्वाब

खुली ऑंख के ख्वाब सुहाने क्यों ये अचानक टूट गये /
ज़ीस्त मेरी थी जिनके सहारे अब ये सहारे टूट गये /
तेरे दम पर हमने फानूश तिरंगे मंगवाये /
तेरे सहारे ही ये हमने सुविधा के सामान जुटाये /
हुई खता आखिर क्या मेरी जो तुम ऐसे रूठ गये /
खुली ऑंख के ख्वाब सुहाने क्यों ये अचानक टूट गये /
तेरे इश्क में दीवाने हम रांझा से आगे निकले /
तुझको पाने की चाहत में पत्थर हैं वो भी पिघले /
स्याह अंधेरा हमें डराता तुम जो ऐसे रूठ गये /
खुली ऑंख के ख्वाब सुहाने क्यों ये अचानक टूट गये /
याद हमें है आज वो लम्हा जब आये थे पहली बार /
जर्रा जर्रा हुआ था रोशन आमद से मेरा घर द्वार /
सपनों की सी बातें लगती आप जो पहलू से हैं गये /
खुली ऑंख के ख्वाब सुहाने क्यों ये अचानक टूट गये /
तेरे बिना बैचेनी रहती नींद नहीं आ पाती है /
तेरा साथ है सबब है चैन का ज़ीस्त हंसी हो जाती है /
ऐसी भी ये क्या रूसबाई वादे तेरे झूठ हुये /
खुली ऑंख के ख्वाब सुहाने क्यों ये अचानक टूट गये /
बहुत हुई ये ऑंख मिचौली अब कुछ दिन तो रूक जाओ /
बने सियासी कठपुतली हो लेकिन अब ना तरसाओ /
बडे शहर तो हो चमकाते कस्बों से क्यों रूठ गये /
खुली ऑंख के ख्वाब सुहाने क्यों ये अचानक टूट गये /
नफा सियासी देने को तुम राजा के माशूक बने /
हम भी आशिक परले तेरे बिल पूरा हर माह भरें
मान भी जाओ बिजली देवी बिन तेरे न काम चले /
खुली ऑंख के ख्वाब सुहाने क्यों ये अचानक टूट गये /

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