मुंबई में हुए आतंकवादी हमले को खबरिया चैनलों ने 60-घंटे के लाइव प्रसारण के दौरान जमकर भुनाया। अपने प्रसारण को सबसे अलग बनाने के फेर में संवेदनहीनता की सारी हदों को पार करते हुए वह सब भी किया जो आतंकवादियों के पक्ष में ही गया। इसी वजह से आतंकवादियों से लोहा ले रहे सुरक्षाकर्मियों को अपने ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने में मुश्किलें भी आईं। मीडिया के इस गैर-जिम्मेदराना रवैए की हर-तरफ आलोचना होने लगी तो कई समाचार चैनलों के संपादक अलग-अलग समाचार पत्रों में लेख लिखकर अपनी पीठ खुद थपथपाने लगे और 60-घंटे के लाइव प्रसारण को ऐतिहासिक तक बता डाला। इन संपादकों ने कहा कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए आतंकी कार्रवाई का सजीव प्रसारण किया ना कि टीआरपी के लोभ में।
समाचार चैनलों के ये कर्ता-धर्ता कितना भी सफाई दे लें लेकिन इस बात से तो हर कोई वाकिफ है कि खबरिया चैनलों के बीच तेजी से बढ़ी गलाकाट प्रतिस्पर्धा की वजह से कई गलतियां बार-बार दुहराई जा रही हैं। यह गलाकाट प्रतिस्पर्धा है किसी भी तरह ज्यादा से ज्यादा टीआरपी हासिल करने की। क्योंकि इसी पर समाचार चैनलों की आमदनी निर्भर करती है। टीआरपी और आमदनी का सीधा सा संबंध यह है कि विज्ञापनदाताओं के लिए किसी भी चैनल की दर्शक संख्या जानने का और कोई दूसरा जरिया नहीं है। इसी टीआरपी के आधार पर चैनलों को विज्ञापन मिलता है। हालांकि, टीआरपी मापने के तौर-तरीके पर भी सवालिया निशान लगते रहे हैं, जो तार्किक भी हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि आखिर महज सात हजार बक्सों और वो भी सिर्फ महानगरों में लगाकर पूरे देश के टेलीविजन दर्शकों के मिजाज का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है। पर दूसरा रास्ता ना होने की वजह से धंधेबाज इसी के जरिए अपना-अपना धंधा चमकाने में मशगूल हैं।
मुंबई आतंकी हमले के दौरान 60-घंटे तक चले ऑपरेशन कवर करने को भले ही समाचार चैनलों में ऊंचे ओहदों पर बैठे लोग अपनी जिम्मेदारी बता रहे हैं और इस कवरेज पर अपनी पीठ थपथपा रहे हों लेकिन सच यही है कि इस दौरान खबरिया चैनलों की टीआरपी बढ़ गई। जाहिर है कि इस बढ़ी टीआरपी को भुनाने के लिए इन खबरिया चैनलों के विज्ञापन दर में बढ़ोतरी होना तय है और फिर इनकी कमाई में ईजाफा होना भी निश्चित है।
बहरहाल, टीआरपी नापने वाली एजेंसी टैम यानि टेलीविजन ऑडिएंस मेजरमेंट के आंकड़े बता रहे हैं कि 26-30 नवंबर के बीच समाचार चैनलों के संयुक्त दर्शक संख्या में तकरीबन एक 130 फीसदी का ईजाफा हुआ। यानि खबरिया चैनल देखने वालों की संख्या दुगना से भी ज्यादा हो गई। जबकि मनोरंजन चैनलों के दर्शकों की संख्या में जबर्दस्त कमी आई। टैम के मुताबिक कुल दर्शकों में से 22.4 प्रतिशत दर्शक इन चार दिनों के दौरान हिंदी खबरिया चैनल देखते रहे। जब से टीआरपी नापने की व्यवस्था भारत में हुई तब से अब तक इतनी बड़ी संख्या में लोगों ने हिंदी समाचार चैनलों को कभी नहीं देखा। इससे साफ है कि आतंकवाद की यह घटना मीडिया को एक फार्मूला दे गई और तमाम आलोचनाओं के बावजूद भविष्य में भी मीडिया ऐसी घटनाओं को लाइव कवरेज के दौरान बेचते हुए दिखे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि किसी भी कीमत पर ज्यादा से ज्यादा टीआरपी बटोरना और फिर अपना बिजनेस बढ़ाना ही प्राथमिकता बन जाएगी तो कम से कम वहां तो पेशेवर जिम्मेदारी की भी अपेक्षा करना ठीक नहीं है। इन चार दिनों के दौरान खबरिया चैनल जमकर आतंक की फसल काट रहे थे वहीं दूसरे सेगमेंट के चैनलों को इसका नुकसान उठाना पड़ा। इस दरम्यान मनोरंजन चैनलों का कुल दर्शकों में 19.5 फीसदी हिस्सा रहा जबकि हिंदी फिल्म दिखाने वाले चैनलों को 15.1 प्रतिशत दर्शक मिले।
खबरिया चैनलों में ऊंचे ओहदों पर बैठे लोगों के शब्दों में कहें तो 26 से 30 नवंबर मीडिया कवरेज के चार ऐतिहासिक दिन थे। मीडिया कवरेज के इन ऐतिहासिक दिनों की बदौलत 29 नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में हिंदी खबरिया चैनलों के पास कुल दर्शकों में से 16।1 फीसदी थे। जबकि इसके पहले के चार सप्ताहों के आंकडे़ देखें तो यह पता चलता है कि इस दौरान हिंदी समाचार चैनलों को औसतन हर हफ्ते 6.7 प्रतिशत लोग देखते थे। इससे यह बिल्कुल साफ हो जा रहा है कि सही मायने में इस आतंकवादी हमले ने खबरिया चैनलों के लिए संजीवनी का काम किया। दर्शकों की संख्या दुगना से भी ज्यादा हो जाना इस बात की गवाही दे रहा है।
इस दरम्यान सबसे ज्यादा फायदा आज-तक को हुआ। इस घटना से पहले समाचार देखने वाले दर्शकों में से 17 फीसद लोग इस चैनल को देखते थे। वहीं इस घटना के दौरान आज-तक को 23 फीसद लोगों ने देखा। इसके अलावा जी न्यूज के दर्शकों की संख्या भी 8 फीसद से बढ़कर 11 फीसद हो गई। उस सप्ताह से पहले तक कुल दर्शकों की संख्या में स्टार न्यूज की हिस्सेदारी 15 फीसद थी। इस चैनल को भी 60-घंटे तक लाइव कवरेज का फायदा मिला और दर्शकों की संख्या में एक फीसदी का ईजाफा हुआ और इसकी हिस्सेदारी उस सप्ताह में 16 फीसद रही। जबकि 16 फीसद के साथ इंडिया-टीवी, 11 फीसद के साथ आईबीएन-सेवन और 8 फीसद के साथ चल रहे एनडीटीवी के दर्शक संख्या में इस आतंकी घटना के लाइव प्रसारण के दौरान भी कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।
आतंकवादी हमले के लाइव कवरेज की फसल काटने के मामले में गंभीरता का लबादा ओढ़े रहने का ढोंग रचते रहने वाले अंग्रेजी खबरिया चैनल भी पीछे नहीं रहे। अंग्रेजी समाचार चैनलों में इस दौरान सबसे ज्यादा फायदा एनडीटीवी-24x7 को हुआ। आतंकी हमले से ठीक पहले वाले सप्ताह तक इस चैनल के पास अंग्रेजी समाचार चैनल देखने वाले 25 प्रतिशत दर्शक थे, जो आतंक के 60-घंटे के लाइव कवरेज वाले सप्ताह में बढ़कर 30 फीसदी हो गए। दर्शकों में हिस्सेदारी के मामले में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के अंग्रेजी खबरिया चैनल टाइम्स-नाउ का शेयर भी 29 नवंबर को समाप्त हुए सप्ताह में 23 फीसदी से बढ़कर 28 प्रतिशत हो गया। इस दौरान न्यूज-एक्स के दर्शकों की संख्या में भी मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गई। जबकि सीएनएन-आईबीएन और हेडलाइंस-टुडे के दर्शकों की संख्या में कमी दर्ज की गई।
आतंकवादी हमलों के दौरान इसके व्यावसायिक असर को लेकर हिंदी और अंग्रेजी के बिजनेस चैनलों पर भी जमकर चर्चा हो रही थी। यहां जो व्यावसायिक कयासबाजी चल रही थी वह कितना सही साबित होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इस दौरान इन चैनलों की टीआरपी जरूर बढ़ गई। हिंदी के बिजनेस समाचारों वाले चैनलों की टीआरपी में संयुक्त तौर पर 25 फीसदी,जबकि अंग्रेजी के बिजनेस खबरों वाले चैनलों की टीआरपी में तकरीबन 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
Wednesday, January 14, 2009
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